एक बूढ़ा था जो शहर की गलियों-गलियों घूमता और चिल्लाता जाता था - " मूर्ख हूँ- मूर्ख हूँ " लोग उसकी बात पर ध्यान न देते, क्यों कि सब उसे पागल समझते थे। बच्चे उसे परेशान करते। बड़े उसे दुत्कारते।
एक दिन एक अक्लमंद आदमी ने उसे सहानुभूतिपूर्वक खाना खिलाया, कपड़े आदि दिए और प्रेम से पूछा- " क्यों भाई, ये क्या चिल्लाते रहते हो- " मूर्ख हूँ-मूर्ख हूँ " ? मुझे तुम ज़रा भी मूर्ख नहीं लगते। "
वह अचानक रो उठा। बोला- " तुमने डूबा गाँव का नाम सुना होगा। आज से तीस साल पहले वहां भयंकर बाढ़ आई थी। उस में मेरा सर्वस्व डूब गया था। मैं उस गाँव का सबसे धनी साहूकार था। मैंने जिन्दगी भर अपना और अपने कुटुम्ब का पेट काट-काट कर धन जोड़ा था. न खाया, ना दान-धर्म किया। मुझ से बडा मूर्ख कौन होगा।" इतना कह वह शहर के बाहर खण्डहर की और भाग गया।
अक्लमंद आदमी के मुंह से निकल गया - " बेचारा बदनसीब "
जिन्दगी की सीख : वह खुशनसीब है जिसने खाया और दान-धर्म भी किया और वह बदनसीब है, जिसने जमा किया और छोड़कर मर गया।
एक दिन एक अक्लमंद आदमी ने उसे सहानुभूतिपूर्वक खाना खिलाया, कपड़े आदि दिए और प्रेम से पूछा- " क्यों भाई, ये क्या चिल्लाते रहते हो- " मूर्ख हूँ-मूर्ख हूँ " ? मुझे तुम ज़रा भी मूर्ख नहीं लगते। "
वह अचानक रो उठा। बोला- " तुमने डूबा गाँव का नाम सुना होगा। आज से तीस साल पहले वहां भयंकर बाढ़ आई थी। उस में मेरा सर्वस्व डूब गया था। मैं उस गाँव का सबसे धनी साहूकार था। मैंने जिन्दगी भर अपना और अपने कुटुम्ब का पेट काट-काट कर धन जोड़ा था. न खाया, ना दान-धर्म किया। मुझ से बडा मूर्ख कौन होगा।" इतना कह वह शहर के बाहर खण्डहर की और भाग गया।
अक्लमंद आदमी के मुंह से निकल गया - " बेचारा बदनसीब "
जिन्दगी की सीख : वह खुशनसीब है जिसने खाया और दान-धर्म भी किया और वह बदनसीब है, जिसने जमा किया और छोड़कर मर गया।
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